ग्रामोदय के वर्तमान और भावी स्वरूप को लेकर हुई राष्ट्रीय गोष्ठी

ग्रामोदय के वर्तमान और भावी स्वरूप को लेकर हुई राष्ट्रीय गोष्ठी
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– ग्रामोदय महोत्सव का तीसरा दिन
चित्रकूट। महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय में चल रहे ग्रामोदय महोत्सव के अंतर्गत आज तीसरे दिन राष्ट्रीय ग्रामोदय गोष्टी,कृषक परामर्श गोष्ठी, उन्नत पशु प्रतियोगिता, पूर्व छात्रों का सम्मेलन : पुरा छात्र संगम, कार्यक्रम संपन्न हुए। साथ ही खेल प्रतियोगिताओं में कबड्डी, वॉलीबॉल और क्रिकेट के आयोजन तथा मंचीय  कलाओं में प्रहसन, मूक अभिनय और मिमिक्री की प्रतियोगिताओं के सहित एकल और समूह नृत्य की प्रस्तुतियां आकर्षक रही। महोत्सव के तीसरे दिन का प्रमुख आकर्षण ग्रामोदय परिकल्पना : वर्तमान स्वरूप एवं भावी योजना विषयक राष्ट्रीय गोष्ठी रही, जिसमें नानाजी की शैक्षिक अवधारणा से जुड़े और इस विश्वविद्यालय की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले व्यक्तियों के साथ विश्वविद्यालय के व्यक्तियों के साथ विश्वविद्यालय से गए पूर्व शिक्षकों की सहभागिता रही।
सद्गुरु सेवा संघ ट्रस्ट के प्रमुख डॉ वी के जैन ने कहा कि उनके स्मृति पटल में 12 फरवरी 1991 का वह दिन अंकित है, जिस दिन ग्रामोदय विश्वविद्यालय की आधारशिला रखी गई थी। नाना जी का यह संकल्प चित्रकूट के संतो के आध्यात्मिक आशीर्वाद का ही परिणाम था। अतः आध्यात्मिकता से अनुप्राणित ग्रामोदय विश्वविद्यालय चित्रकूट में ही बन सकता था ।
सर्वोदय सेवा संघ के महामंत्री अभिमन्यु सिंह ने कहा कि नानाजी ग्रामोदय विश्वविद्यालय को व्यक्तित्व निर्माण का केंद्र बनाना चाहते थे ।प्रकृति और पर्यावरण में पूरकता उनका प्रमुख लक्ष्य था। आज विश्वविद्यालय को जनभागीदारी आधारित शैक्षिक प्रारूप विकसित करना चाहिए ,जिससे सुंदर चित्रकूट की परिकल्पना निहित हो और विश्वविद्यालय प्रजातंत्र की  सफलता के लिए लोकनीति का वाहक बने।
पूर्व कुलपति प्रोफेसर अरुण दिवाकर नाथ बाजपेई ने कहा कि 1991 में जब देश ग्लोबलाइजेशन, प्राइवेटाइजेशन और लिबरलाइजेशन का मॉडल बना रहा था तब चित्रकूट में नानाजी गांव के लोगों के परिश्रम और पुरुषार्थ से नए आत्मनिर्भर भारत की नीव रख रहे थे। आध्यात्मिकता और परस्पर पूरकता का भाव नाना जी के चिंतन के केंद्र में था।  पूर्व कुलपति प्रोफ़ेसर ज्ञानेंद्र सिंह ने गांव की बेहतरी के लिए कृषि पशुपालन और कृषि संबंधी उत्पादों के मूल्य संवर्धन की पैरवी की ।उन्होंने विश्वविद्यालय के शोध कार्यों को ग्रामीण समस्याओं से जोड़कर उनके अर्थ पूर्ण हल के लिए विश्वविद्यालय को प्रयास करने का सुझाव दिया। पूर्व कुलपति प्रोफेसर  एन सी गौतम ने कहा कि विश्वविद्यालय के सम्मुख चुनौतियां भी हैं और अवसर भी।सीमित संसाधनों में सावधानीपूर्वक योजनाएं बनानी चाहिए ।केवल सैद्धांतिक शिक्षा के अलावा हैंड ऑन ट्रेनिंग से कौशल शिक्षा को सही मायने में लोकप्रिय और रोजगार परक बनाया जा सकता है। पूर्वांचल विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो राजा राम यादव ने कहा कि नानाजी का चिंतन एकात्म मानववाद से प्रेरित है।उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय की गतिविधियों की जो कल्पना नाना जी ने की थी, उसे आज पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। गोद लिए गांव का समग्र विकास और दादी मां का बटुआ जैसी प्रभावी योजनाओं से हम गांव में परिवर्तन ला सकते हैं।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि और जे बी पंत इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल डेवलपमेंट के निदेशक प्रोफेसर बद्री नारायण त्रिपाठी ने गुणात्मक विकास पर बल दिया और कहा कि बीते वर्षों में गांव की प्रचलित अवधारणा में व्यापक परिवर्तन हुआ है आज गांव में सूचनाएं और जन आकांक्षाये ड्राइविंग फोर्स।उन्होंने गाँव की वर्तमान जरूरतों के आधार पर ग्रामोदय विश्वविद्यालय से रणनीति बनाने का अनुरोध का किया है।
आईटीएम विश्वविद्यालय बड़ौदा कैंपस के कुलपति प्रो योगेश उपाध्याय ने कहा कि नाना जी ने एकीकृत व्यक्तित्व विकास की अवधारणा महत्वपूर्ण माना था। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय वैल्यू बेस्ड एजुकेशन का सर्वथा अभिनव मॉडल देश को दे सकता है।प्रो उपाध्याय ने  ग्रामोदय विश्वविद्यालय की विशेषताओं को राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रावधानों में में पिरोकर पाठ्यक्रम संरचना का सुझाव दिया। सामाजिक संस्था सहजीवन के निदेशक डॉ गिरधर माथनकर और डॉ मनीषा माथनकर ने ग्राम विकास के अपने प्रयोगों के आधार पर अपने बहुमूल्य सुझाव रखें, जिसमें लाइवलीहुड एक्टिवेशन सेंटर की स्थापना सबसे प्रमुख थी। उन्होंने ग्रामोदय विश्वविद्यालय के नवाचारों को पुनर्जीवित करने की पैरवी की।
जेआर दिव्यांग विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर योगेश चंद्र दुबे ने मूल्य एवं सामाजिक उत्तरदायित्व के विशिष्ट पाठ्यक्रम का उल्लेख करते हुए ग्रामोदय विश्वविद्यालय के नवाचारो का स्मरण किया। कार्यक्रम का प्रारंभ संगोष्ठी के संयोजक एवं प्रबंध संकाय के अधिष्ठाता प्रोफेसर अमरजीत सिंह ने प्रतिभागियों के सम्मुख विश्वविद्यालय की विकास गाथा की प्रस्तुति एवं गोष्ठी के उद्देश्यों को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि संगोष्ठी के माध्यम से नाना जी के शैक्षिक विचारों से जुड़ी विभूतियों के अनुभव और ज्ञान से अतीत की सीख, वर्तमान की समीक्षा और भावी क्रियाकलापों के लिए ब्लू प्रिंट तैयार करना है। संगोष्ठी के अध्यक्षीय उद्बोधन में ग्रामोदय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो भरत मिश्रा ने आयोजन को ऐतिहासिक निरूपित करते कहा कि नाना जी की विचारधारा से जुड़े विभूतियों के समागम का यह अमृत पर्व है। मुझे विश्वास है कि आप सब के सहयोग से जो रचनात्मक सुझाव प्राप्त हुए हैं उसे विश्वविद्यालय पूरी संवेदनशीलता और समर्पण यथार्थ  रूप में परिणित करने का प्रयास करेगा । संचालन प्रोफेसर वीरेंद्र कुमार व्यास एवं आभार प्रदर्शन संयोजक डॉ सीपी गूजर एवं डॉ  संतोष  अरसिया  ने किया। आयोजन का प्रारंभ माँ सरस्वती के चित्र पर दीप प्रज्वलन और अतिथियों के स्वागत से हुआ।ग्रामोदय महोत्सव के संयोजक व अधिष्ठाता कला संकाय प्रो नंदलाल मिश्रा ने किया। गोष्ठी हाइब्रिड मोड़ में आयोजित की गई थी,जिसमें मुख्य रूप से प्रो सुशील शर्मा, प्रो अनिल मिश्रा, प्रो वेदप्रकाश व्यास, प्रेम सिंह, स्वतंत्र कुमार तिवारी व गुंजन मिश्रा आदि शामिल हुए।
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