जगद्गुरु रामभद्राचार्य महाराज ने शुरू की श्रीराम कथा

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चित्रकूट : तुलसीपीठाधीश्वर पद्म विभूषण जगद्गुरु रामभद्राचार्य का जन्मोत्सव उनके शिष्यों द्वारा धूम-धाम से मनाया जाता है, लेकिन इस वर्ष कोरोना महामारी के प्रकोप को देखते हुए इस उत्सव को सीमित रखा गया है। जिसके तहत प्रतिवर्ष की तरह इस वर्ष भी बुधवार को कोविड-19 नियमों का पालन करते हुए मुंबई हाईकोर्ट के प्रसिद्ध अधिवक्ता लालजी केवला प्रसाद त्रिपाठी की यजमानी में तुलसी पीठ के मानस हाल में वाल्मीकि रामायण पर आधारित रामकथा का प्रारम्भ हुआ। जगद्गुरु द्वारा यह कथा आगामी 20 जनवरी तक कही जाएगी।

   कथा के प्रथम दिन जगद्गुरु ने शास्त्रीय शैली में अपनी विद्वतापूर्ण तर्कों के माध्यम से श्रद्धालुओं को रामकथा का रसपान कराया। सर्वप्रथम उन्होने रामायण के सभी संभावित अर्थों का प्रतिपाद्य बताया। उसके बाद वर्तमान समय में रामकथा में विद्यमान विवादों को शमित करते हुए उन्होने श्रीराम को न केवल भगवान बल्कि ब्रह्म के स्वरूप में भी साबित किया। महर्षि वाल्मीकि के श्लोकों के माध्यम से जगद्गुरू ने सिद्ध किया कि महर्षि वाल्मीकि ने कथा का प्रारम्भ ही भगवान श्रीराम के स्वरूप के लिए किया है। साथ ही उन्होने बताया कि ईश्वर के गुण ऐश्वर्य, समग्रता, धर्म, यश, कीर्ति, ज्ञान व वैराग्य को स्थापित करने के लिए ही महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में छः कांडों का निर्माण किया। प्रतिदिन प्रातः 10 से दो बजे तक चलने वाली इस कथा के प्रथम दिन प्रस्तावना जगद्गुरु के उत्तराधिकारी आचार्य रामचन्द्र दास ने रखी। उन्होने रामकथा का सामाजिक महत्व बताने के साथ ही यजमानों का परिचय कराया। दो बजे व्यासपीठ की आरती के साथ ही कथा के प्रथम दिवस का समापन हुआ। इस दौरान जगद्गुरु के शिष्य आचार्य हिमांशु त्रिपाठी, मदनमोहन, आञ्जनेय, विनय, गोविंद, पूर्णेंदु, पीआरओ एस पी मिश्रा आदि ने सहयोगी के रूप में कार्य किया।

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